भजन/भावगीत

सरस्वती-वंदना

मातु शारदे नमन् कर रहा,तेरा तो अभिनंदन है।

ज्ञानमातु,हे हंसवाहिनी!,बार-बार पग-वंदन है।।

वाणी तुझसे ही जन्मी है,तुझसे ही सुर बिखरे हैं।

तू विवेक को देने वाली,जड़-चेतन सब निखरे हैं।।

यश पाता हर कोई तुझसे,लगता माथे चंदन है।

ज्ञानमातु,हे हंसवाहिनी!,बार-बार पग-वंदन है।।(1)

सत्य सभी पाते हैं तुझसे,धर्म-चेतना मिलती है।

सद् आचारों की रौनक हो,बगिया नित ही खिलती है।।

जिस पर माँ करती हैं करुणा,बन जाता  सद् नंदन है।

ज्ञानमातु,हे हंसवाहिनी!,बार-बार पग-वंदन है।।(2)

गहन तिमिर से आप बचाकर,राह प्रगति  की देती हैं।

अच्छाई-सच्चाई को नित,आप सदा ही सेती हैं।।

जिस पर दया मातु करती हैं,वहाँ नहीं फिर क्रंदन है।

ज्ञानमातु,हे हंसवाहिनी!,बार-बार पग-वंदन है।।(3)

कलम हाथ है,पुस्तक शोभित, शांतचित्त नित माता है।

जिसने वैचारिकता पाई,वह माता को भाता है।।

 हर्षित करतीं मातु महकता,उसका जीवन-उपवन है।

ज्ञानमातु,हे हंसवाहिनी!,बार-बार पग-वंदन है।।(4)

है वसंत की मधुर पंचमी,सारे जग में रौनक है।

मौसम भी तो हर्षाता है,खुशियों की नित दस्तक है।।

हुईं अवतरित मातु शारदे,उल्लासित तो जन-जन है।

ज्ञानमातु,हे हंसवाहिनी!,बार-बार पग-वंदन है।।(5)

मातु शारदे आप धन्य हैं,हर जन को वर देती हो।

जहाँ शिथिलता,कर्महीनता,दुर्विकार हर लेती हो।।

धरा और नभ में रहती हो,यह जग तुमसे पावन है।

ज्ञानमातु,हे हंसवाहिनी!,बार-बार पग-वंदन है।।(6)

    — प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]