चाँद तो मेहरबाँ जमी पर है
उसका अपना यही कहीं पर है
एक दिन उसको ढूंढ ही लेगा
हौसला उसका इस यक़ीं पर है
रातो -दिन ये तलाश जारी है
सारा मुददा तो हाँ -नही पर है
अश्क सहमे हुये हैं कोरो में
हावी दीवानगी नमी पर है
वो जो जज्बों की कदर करते हैं
लोग ऐसे कहाँ कहीं पर हैं
— डॉक्टर इंजीनियर मनोज श्रीवास्तव