सच्चा मित्र
अपने पर तो गुमान था,
हर पल वह परेशान था।
नखरे तो अनेक थे,
पर नथ में लगा लगाम था।
जिद्दी पन था अधिक,
पर यही समय का मांग था।
अरमान तो बढ़ रहे थे,
और अरमानों में आराम था।
अक्सर आदमी आ ही जाता है,
याद आते ही याद दिलाता है।
पहचान होते ही सभी को,
इंतजार अधिक करवाता है।
भूख कभी लगती नहीं,
फिर भी भूखा बताता है।
कुछ लोग सिर्फ बात करते हैं,
कुछ बातें भूख मिटाता है।
कुछ लोगों की बात याद आती है,
कुछ की यादें सताता है।
कुछ में मिलने की हिम्मत होती है,
कुछ दूर से ही हाथ हिलाता है।
ज़िन्दगी समुद्र जैसे हिचकोले खाती,
फिर भी साथ निभाता है।
डोर पतंग की हाथ में थामे,
अपना मन बहलाता है।
सच्चे लोगों की परख हो जो करना,
उनके भावों से है लड़ना।
अगर मुसीबत पड़ा हो कहीं,
हर पल साथ खड़ा हो यही।
विनय पूर्वक लड़े जो मन से,
आखिर अंत में कहे जो सबसे।
परम मित्र वही बनता है,
आखिर सोने सा चमकता है।
— कमलेश ‘लोहा’