इंसानियत
इंसानियत
“बेटी, तुम शहर के सबसे बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट ठा. गजेंद्र सिंह की इकलौती बेटी हो। अरबों रुपये की प्रापर्टी का एकमात्र वारीस। तुमसे शादी करने के लिए तो देश-विदेश के हजारों करोड़पति परिवार के लड़के तैयार बैठे हैं और तुम उस दो कौड़ी के पशु चिकित्सक रमेश से शादी की जिद पाले बैठे हो। पता नहीं क्या खासीयत दिखा तुम्हें उस ढोर डॉक्टर में ?”
“इंसानियत पापा। रमेश और मेरी स्कूली पढ़ाई एक ही स्कूल में हुई है। स्कूल के दिनों में वह बहुत ही शांत और पढ़ाकू स्वभाव का था। उस समय तो शायद ही कभी मेरी उससे बात हुई हो। पिछले हफ्ते जेठ की तपती दुपहरी में, जहाँ लोग घर से बाहर निकलने के पहले सौ बार सोचते हैं, जिंदगी और मौत के बीच लटक रहे जिंदा इंसान को नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाते हैं, वह लड़का मुझे हाइवे पर तड़पते हुए एक लावारिस कुत्ते का इलाज करते हुए दिखा। पापा, जिस इंसान के हृदय में एक लावारिस कुत्ते के प्रति इतनी सहानुभूति का भाव हो, वह कितना सहृदय होगा, आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं।”
“बेटा इस रमेश कुमार सिंह का कुछ एड्रेस वगैरह है तुम्हारे पास।”
“क्यों ?”
“अरे भई, यहाँ हम घर बैठे रह गए, तो तुम दोनों की शादी कैसे हो सकती है ? रिश्ता की बात करने उनके घर तो जाना ही पड़ेगा न।”
“पापा…।” वह खुशी से अपने पापा से लिपट गई।
“आई एम प्राउड ऑफ यू माई डियर। मुझे तुम्हारी पसंद पर नाज है। बोलो कब चलना है बात करने ?”
मारे खुशी के उसकी आँखों से आँसू निकल गए। वह सपने में भी नहीं सोच सकी थी कि उसके पापा इस रिश्ते को इतनी आसानी से स्वीकार कर लेंगे।
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़