ऐसी क्या मजबूरी है
बिना रिश्तों के यह ज़िन्दगी अधूरी है
रिश्तों का होना ज़िन्दगी में बहुत ज़रूरी है
मर मर कर क्यों जी रहे हैं लोग विचार करो
क्यों भूल गए रिश्तों की एहमियत ऐसी क्या मजबूरी है
माता पिता ने बच्चों को पढ़ाया लिखाया
पेट अपना काट कर उनको खिलाया
उस पढ़ाई से तो थे अनपढ़ ही अच्छे
जिसने मां बाप को बृद्धाश्रम पहुंचाया
अब कहां मिलेगा पुत्र जैसे श्रवण कुमार
जिसने माता पिता पर सब कुछ दिया वार
आजकल कौन रखना चाहता है पुरानी चीजें
माया के इस चक्कर ने कई घर दिए उजाड़
नई पीढ़ी रहने लगी है अब बुजुर्गों से दूर
खो गई जवानी नशे में रहती है हरदम चूर
संस्कार तो जैसे गुम हो गए अंधरे में कहीं
बड़ा बन गया अगर तो भी काहे का ग़रूर
— रवींद्र कुमार शर्मा