यमराज की नसीहत
अपनी तारीफ सुनकर
यमराज दौड़ा दौड़ा मेरे पास आया
और तारीफों का दुखड़ा रोकर सुनाने लगा।
प्रभु! मेरी तारीफों पर रोक लगवा दो
बस इतना एहसान करा दो।
मैंने ढांढस बंधाते हुए पूछा
आखिर हुआ क्या है?
जो तुम्हें घायल कर गया है।
यमराज हाथ जोड़कर मासूमियत से कहने लगा
आपके लोक की माया मुझे समझ नहीं आई
जिसको जितना मान सम्मान दिया
उसने उतना ही मुझे रुलाया,
जिसे कभी तनिक भी सम्मान नहीं दिया
उसने मेरा भाव जी भरकर बढ़ाया।
आपके लोक की लीला बड़ी विचित्र है
यहाँ किसी को किसी की नहीं पड़ी है
लोग स्वार्थ में अँधे हो गये हैं,
तनिक लाभ के लिए रंग बदल रहे हैं
जाने किस किस को अपना बाप कह रहे हैं,
जोक्षऊपर से बड़ा लाड़ प्यार दिखा रहे हैं
ऐसे ही लोग पीठ पीछे वार कर रहे हैं
मेरी चिंता ही नहीं मेरे काम का बोझ भी बढ़ा रहे हैं
मुझे बेबस लाचार कर रहे हैं
जिसे अभी मरना नहीं जीना था
उसे जबरन मरने पर मजबूर कर रहे हैं।
मैंने उसे रोककर पूछा
आखिर! तू कहना क्या चाहता है?
तब यमराज ने हाथ जोड़कर कहा-
प्रभु! मैं कुछ नहीं कहना चाहता हूँ
मैं तो आपसे बस फरियाद कर रहा हूँ
बस! मेरी नौकरी के साथ मेरी जान भी बचा लो
अपने लोक के लोगों को तनिक समझा लो
मानव हैं तो मानव की तरह रहें
मेरी कार्य प्रणाली में अवरोध न उत्पन्न करें,
बेवजह असमय किसी को मरने को मजबूर न करें।
रिश्ता निभाएं या भाड़ में जाएं
बस मुझे गुस्सा न दिलाएं,
मरे या मारे पर यमलोक की व्यवस्था
बिगाड़ने का दुस्साहसिक कदम तो न उठाएं।
यमलोक की चुस्त दुरुस्त व्यवस्था में पलीता न लगाएं,
समझ में न आये तो धरती लोक पर ही
एक वैकल्पिक यमलोक बनवाएं
अपनी सुविधा से अपना यमराज रख लें
और हमसे ही नहीं हमारी सेना से दूरी बनाएं।
वरना वो दिन दूर नहीं कि लोग मरेंगे
पर उनकी आत्माएं यमलोक में नहीं पहुंच पायेंगी,
रास्ते में ही भटकती रही जायेंगी।
क्योंकि हम सिर्फ समयबद्ध आत्माओं को ही
उनकी मंजिल तक ले जायेंगे,
बाकी आत्माओं को रास्ते में ही छोड़ जायेंगे
तब धरती के लोग बहुत पछताएंगे
जब उनके अपनों की आत्माएं ही
उनकी जिंदगी को नरक बनाएंगे
तब वो क्या करें, ये हम भी नहीं बताएंगे
और पहले की तरह चैन की बंशी बजाएंगे
धरतीवासियों की बेबसी का आनंद उठायेंगे,
अपनी औकात पर हम भी उतर आयेंगे
और बेशर्मी से मुस्कराते हुए ठेंगा दिखाएंगे
धरती वाले हमारा तब भी कुछ बिगाड़ नहीं पायेंगे।