गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मन का उपवन खूब महकता रहता है
इक पंछी भी रोज़ चहकता रहता है

कलियाँ देख विहँसती किए ही
फूलों का दिल देख बहकता रहता है

ग़ैरों की लगती नज़रें अब हो चौकस
हर पल ही यह हृदय दहकता रहता है

ख़ूनी खेल न खेले कोई अब देखो
आँखों से अंगार बरसता रहता है

देखा दुश्मन ने मात सदा देते हैं
फिर भी सीमा – पास फटकता रहता है

बाँध कफ़न जब जाता सैनिक सीमा पर
नैन तिरंगा देख लहरता रहता है

सुन लो बातें झूठे के पैर न होते
झूठा तो सुन देख फिसलता रहता है

प्यार करे जो इंसां तुम देखो उसको
यादों में दिन – रात तड़पता रहता है

तन्हाई में मिलती खूब कसक देखो
जाने अंदर कौन सिसकता रहता है

प्यार किया तो मीठी यादें ही मिली
मन – अंतर आज सुलगता रहता है

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’