प्रकृति का एक झलक
मंद मारुत ने
जँभाई लेते हुए
अँगड़ाई ली, धीरे-धीरे
मेघ-माला ने
हमला किये
प्राण, सूरज के
चंड हवा-भँँवरी
घुमा-घुमा, निगले
पत्ते, हरे पीले
हल्की बूँदों ने
गिरायी डालों से
आम्र-मंजरी
काली घटा की
बावली हो गयी
रिमझिम-सिसकी
नदी युवती ने
बदला दिये
सरगम ताल के
दलदला पानी ने
उखाड़ते जड़ें
पटके उल्टा, पेड़-पौधे
जंगली छोटी से
आँसू मिट्टी के
बहाये गये, और चट्टानें
विहँँग जोड़ी ने
बनाया, साथ जीने
घोंसला ढूँँढ़ा, उड़ते-भीगते
सूअर माँ ने
बावली बनके
रतन ढूँँढ़ा, रोते-रोते
नटखट जुगनूँ ने
साथ लाये
पहना लिये, वसन काले
रिमझिम-सिसकी
चहक विहँँग की
और चीखें सुला दीं
रजनी माँ ने
निःशब्द कानन भर
आधी रात सजाया
कर्त्तव्य निभाया
चंद्र-गोपी ने
— धनंजय वितानगे, श्री लंका