राम कसम
राम कसम
“तुम्हें पता है कि रमन ने जानबूझकर अपनी स्कूटी से तुम्हें ठोकर मारकर घायल किया है, फिर भी तुमने राम की झूठी क़सम खाकर यह क्यों कहा कि तुम्हारी गलती से ठोकर लग गई है ?” राजेश ने महेश से पूछा।
“देखो राजेश, तुम तो जानते हो प्रिंसिपल सर का ग़ुस्सा। यदि मैं सही बात बताता, तो वे रमन को स्कूल से ही निकाल देते, शायद पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करा देते। भले ही रमन कुछ दिन बाद जेल से भी छूट जाता, पर इससे उसका तो पूरा कैरियर ही चौपट हो जाता, जो मैं बिल्कुल नहीं चाहता।” महेश ने कहा।
“पर तुम्हारी चोट… ऊपर से राम जी की कसम ?” राजेश कुछ और भी कहना चाहता था।
“ये तो एक-दो हफ्ते में ठीक हो जाएंँगे पर रमन का फ्यूचर…? और फिर इसके बाद शायद हम जीवनभर एक-दूसरे के दुश्मन बनकर जाते। हमारे संबंध हमेशा के लिए टूट जाते। इसलिए मैंने राम जी की झूठी क़सम खाकर भी उसे बचाने की कोशिश की। मेरे राम जी जानते हैं कि मेरी नीयत बिल्कुल भी ग़लत नहीं थी।” महेश ने कहा।
“महेश…” आवाज सुनकर दोनों पीछे मुड़े। देखा सामने रमन हाथ जोड़े खड़ा था, पास आकर बोला, “मुझे माफ़ कर देना भाई। मैं कान पकड़कर तुमसे माफी माँगता हूँ। आज तुमने झूठ बोलकर मुझ पर उपकार किया है, उसका बदला मैं शायद कभी नहीं चुका सकूँगा। फिर भी… क्या मुझसे दोस्ती करोगे ?”
महेश ने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़