अकेला
हाँ किताबों से घिरा रहता हूं
इनसे अच्छा दोस्त कौन हो सकता है ?
एक-एक पन्ना पढ़ लेता हूं
जिंदगी का रोज
इंसानों से कहीं ज्यादा अच्छी है
इनकी दोस्ती
य कभी धोखा नहीं देती
फरेब नहीं करती
गिरगिट की तरह रंग भी नहीं बदलती
बस हाथों की छुवन पड़ने पर
ये खुश हो जाती हैं
जब भी अकेला पड़ता हूं
हमेशा मुझे समझाती हैं
जिस पन्ने पर छोड़ कर सो जाता हूं
सुबह उसी पन्ने पर मिलती है
हाँ किताबों से घिरा रहता हूं
इनसे अच्छा दोस्त कौन हो सकता है ?।
— प्रवीण माटी