ग़ज़ल
जो सुगन्ध चहुंदिस बिखराए पक्का इत्र वही होता ।।
मन मस्तिष्क में जो बस जाए अच्छा चित्र वही होता ।।
जी हां – जी हां करने वाला नहीं हितैषी हो सकता,,,
जो स्पष्ट बताए त्रुटियां सच्चा मित्र वही होता ।।
भूले से भी अहित करे ना कभी किसी का जीवन में,,,
हर सम्भव सौहार्द निभाए पूज्य चरित्र वही होता ।।
सबके हित का ध्यान रखे जो सत्य मार्ग अनुगामी हो,,,
पर दुख लखि जो द्रवित हो उठे हृदय पवित्र वही होता।।
जाने किस युग की बातें करते हो नितान्त इस कलयुग में,,
जो ऐसी बातें करता है व्यक्ति विचित्र वही होता।।
— समीर द्विवेदी नितान्त