मुक्तक/दोहा मुक्तक *शरद सुनेरी 02/03/202402/03/2024 डुबोकर स्वेद में तन को, कई दीपक जलाये हैंदबाकर नींव में तन को, शिखर अगनित सजाये हैंमेरी साँसों की सुरभि से, चमन के गुल महकते हैंनये युग का दधीचि, स्वर्ग धरती के बचाये हैं। — शरद सुनेरी