ग़ज़ल
जाति-पाति अहम की सब जंज़ीरें तोडेंगे बच्चे।
म्यानों में बंद पंड़ी शमशीरें तोड़ेंगे बच्चे।
परिश्रम विद्या उद्यम शक्ति संयम अंतर्दृष्टि से।
हाथ में बंद लकीरों की तकदीरें तोड़ेंगे बच्चे।
मज़दूरों के हाथों में सत्ता का परचम लहराएगा,
खून पसीने में उलझी ताबीरें तोड़ेंगे बच्चे।
शीशे की किर्चियां भांति एक प्यासे मारूस्थल के,
माथे उकरी गांठदार लकीरें तोड़ेंगे बच्चे।
यद्यपि गगन बाज ना आया तारों को खण्डित करने से,
रवि बन कर अँधेरे से तदबीरें तोड़ेंगे बच्चे।
गहरे बहते दरियाओं को फिर कैसे रोक सकोगे,
हालातों के पैरों से ज़ंजीरें तोड़ेंगे बच्चे।
नव इतिहास में सृजन का अस्तित्व पैदा करने को,
अलमारी में बंद पड़ी तस्वीरें तोड़ेंगे बच्चे।
हालातों में बालम बुद्धि स्वत्त्व की रक्षक बनेगी,
बेइन्साफी में वितरित जागीरें तोड़ेंगे बच्चे।
— बलविंदर बालम