अथाह दर्द का समंदर
जा रहा हूं देखने अथाह दर्द का समंदर,
इन्हीं आंखों के सामने होगा हर मंजर,
आशंका तनिक नहीं है कुछ खोना पड़ेगा,
पर वक़्त बताएगा कितना रोना पड़ेगा,
रखना होगा एक पांव में अपना शरीर,
समय ही होगा सैनिक राजा और वजीर,
बस जिंदा रहने के लिए खाना होगा,
हर आवाज पे इधर उधर जाना होगा,
हालात रखेगी हर पैमाने पर नजर,
जा रहा हूं देखने अथाह दर्द का समंदर,
कराह होगा, चीखें होंगी होगा दर्द से तड़पन,
मरीज होंगे कनीग होंगे तेज रहेगा धड़कन,
कोलाहल होगा बाहर शोर तो अंदर खामोशी,
अनभिज्ञ होंगे विज्ञ होंगे कहीं पर मदहोशी,
क्या हिन्दू क्या मुस्लिम क्या सिख और ईसाई,
तन की बनावट प्रकृति ने नहीं जुदा बनाई,
तड़प हर ओर होगी क्या गरीब क्या सिकंदर,
जा रहा हूं देखने अथाह दर्द का समंदर।
— राजेन्द्र लाहिरी