चाहत
किसी उदास चेहरे पर हँसी का रंग चढाए
चलो इस बार होली आप हम ऐसे मनाएँ
सभी घर में बनें पकवान पर कुछ घर हैं ऐसे
जहाँ भूखे बिलखते रो रहे मासूम बच्चे
चलो इनको चखाएं स्वाद गुझियों का
के इनको भी मिले वह स्वाद जो इनको हँसाए
चलो इस बार होली आप हम ऐसे मनाएँ
गले इनको लगाकर रंग भरे जीवन में इनके
चढे टेसू की रंगत गुलाबों की महक से ये भी मह्के
अनाथालय वा वृद्धाश्रम के जैसी न जगह इस जहाँ में
चलो जन – जन में आत्मियता ऐसा रंग चढाएं
चलो इस बार होली आप हम ऐसे मनाएँ
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’