कहानी

सुरक्षित भविष्य

जामगाँव में एक व्यापारी रहता था। नाम था उसका- रामधन। उसके दो बेटे थे- रमाकांत और उमाकांत। दोनों भाई अपने पिता की तरह बहुत मेहनती, ईमानदार, मृदुभाषाी तथा काम को भगवान की पूजा मानने वाले थे।
रामधन ने अपने जीते-जी अपनी सारी सम्पत्ति का बँटवारा कर दिया था, ताकि उनके बाद भाइयों में सम्पत्ति को लेकर लड़ाई-झगड़े न हो तथा उनमें प्रेमभाव बना रहे। बँटवारा में रमाकांत को किराने की दुकान तथा उमाकांत को कपड़े की दुकान मिली। दोनांे की दुकानें अच्छी चल रही थीं तथा वे अपने-अपने परिवार के साथ आनंदपूर्वक जीवन बिता रहे थे।
रमाकांत ने अपने किराने की दुकान का बीमा करवा लिया था तथा नियमित रूप से उसकी किश्तें भी अदा करता था। इसके अलावा वह प्रतिमाह कुछ पैसे बैंक में भी जमा करता था, ताकि आड़े वक्त में काम आए। रमाकांत अपने भाई उमाकांत से भी बार-बार कहता कि वह भी अपने कपड़े की दुकान का बीमा करवा ले तथा कुछ रुपये बैंक में भी जमा करता रहे ताकि मुसीबत में काम आए।
उमाकांत हर बार उसकी बात टाल देता। वह कहता- “अरे भैया, बैंक और बीमा में रखा ही क्या हैं ? जितना पैसा आप इन पर खर्च करते हैं यदि उतना व्यापार में लगा दें, तो आमदनी दुगुनी बढ़ जाएगी। वह बैंक और बीमा को फालतू समझता था।
एक दिन अचानक न जाने कैसे उनके मुहल्ले में आग लग गयी। कई घर जल गए। रमाकांत और उमाकांत के दुकान भी जल कर खाक हो गए। दुकान में रखे सामान और नगदी भी जल गए। उन्होंने बहुत से लोगों को उधार दे रखा था और उनके नाम एक बही में लिख रखे थे। वह वही भी इस आग जनी में जल कर राख हो चुका था।
अपने-अपने दुकान की हालत देखकर दोनों भाई बहुत रोए। पड़ोसियों तथा रिश्तेदारों ने उन्हें धीरज बंधाया और फिर से दुकान जमाने की सलाह दी।
बीमा कंपनी से मिले रुपये तथा बैंक में जमा किये हुए रुपयों से रमाकांत ने बहुत कम समय में ही अपना दुकान फिर से जमा लिया परंतु उमाकांत के पास तो फूटी-कौड़ी तक नहीं बची थी, क्योंकि उसने न तो बीमा कराया था और न ही बैंक में रुपये जमा किए थे।
तभी उसे उन ग्राहकों को ध्यान आया उसने कुछ लोगो को उधार दे रखे थे। क्यों न उन पैसों से पुनः दुकान खोला जाये. वह उनके पास गया और पूरी बात बताते हुए उनसे पैसे माँगे।
उन्होंने उमाकांत से हिसाब पूछा तो उसने कहा- ‘‘हिसाब वाला बही-खाता तो जल गया।’’
“फिर तो हम कुछ नहीं कर सकते।” उन्होंने एक ही उत्तर दिया- ‘‘बिना हिसाब देखे हम पैसे कैसे दे सकते हैं ?”
उमाकांत समझ गया कि इनकी नीयत बदल गई है। वह बहुत दुखी हुआ और भारी कदमों से अपने घर लौट आया। वह सोच रहा था कि काश ! उसने भी दुकान का बीमा करवाया होता या बैंक में कुछ रुपये जमा किये होते तो आज ये दिन देखने न पड़ते।
उसकी वर्तमान स्थिति को देखते हुए जान-पहचान के लोग भी उधार देने को तैयार न थे। ऐसे बुरे समय में उसके बड़े भाई ने कुछ रुपये दिए जिससे वह अपनी दुकान फिर से जमा सका।
अब उसने पहले तो दुकान का बीमा करवाया तथा अपने भैया को रुपये लौटाने के साथ-साथ कुछ पैसे बचाकर नियमित रूप से बैंक में जमा करने लगा।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

*डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

नाम : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा मोबाइल नं. : 09827914888, 07049590888, 09098974888 शिक्षा : एम.ए. (हिंदी, राजनीति, शिक्षाशास्त्र), बी.एड., एम.लिब. एंड आई.एससी., (सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण), पीएच. डी., यू.जी.सी. नेट, छत्तीसगढ़ टेट लेखन विधा : बालकहानी, बालकविता, लघुकथा, व्यंग्य, समीक्षा, हाइकू, शोधालेख प्रकाशित पुस्तकें : 1.) सर्वोदय छत्तीसगढ़ (2009-10 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी हाई एवं हायर सेकेंडरी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 2.) हमारे महापुरुष (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 10-10 प्रति नि: शुल्क वितरित) 3.) प्रो. जयनारायण पाण्डेय - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 4.) गजानन माधव मुक्तिबोध - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 5.) वीर हनुमान सिंह - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 6.) शहीद पंकज विक्रम - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 7.) शहीद अरविंद दीक्षित - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 8.) पं.लोचन प्रसाद पाण्डेय - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 9.) दाऊ महासिंग चंद्राकर - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 10.) गोपालराय मल्ल - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 11.) महाराज रामानुज प्रताप सिंहदेव - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 12.) छत्तीसगढ रत्न (जीवनी) 13.) समकालीन हिन्दी काव्य परिदृश्य और प्रमोद वर्मा की कविताएं (शोधग्रंथ) 14.) छत्तीसगढ के अनमोल रत्न (जीवनी) 15.) चिल्हर (लघुकथा संग्रह) 16.) संस्कारों की पाठशाला (बालकहानी संग्रह) 17.) संस्कारों के बीज (लघुकथा संग्रह) अब तक कुल 17 पुस्तकों का प्रकाशन, 80 से अधिक पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन. अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादक मण्डल सदस्य. मेल पता : [email protected] डाक का पता : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा, विद्योचित/लाईब्रेरियन, छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम, ब्लाक-बी, ऑफिस काम्प्लेक्स, सेक्टर-24, अटल नगर, नवा रायपुर (छ.ग.) मोबाइल नंबर 9827914888