कविता

वो तो पागल है…

सुनसान सड़क पर 

कलेजे से लगाए 

नवजात शिशु को,

चली जा रही थी 

बेखौफ निडर,

ममता की प्रतिमूर्ति 

शिशु की मां थी|

रो नहीं रहा था, 

पीयूष नहीं पी रहा था, 

बस वह दौड़ पड़ी, 

ढूंढने एक अस्पताल| 

जो जगाये  बच्चे को, 

वो स्तनपान करा सके|

मिला उसे अस्पताल

चिकित्सक को बताया, 

बच्चे को लिटाया, 

रुंधे  कंठ से बोली 

पी  नहीं रहा है दूध 

कैसे मिटे  उसकी भूख|  

तभी आवाज आयी, 

अरे यह तो वही है 

प्लेटफार्म वाली पागल,

सप्ताह भर पहले, 

जना है एक बच्चा| 

ये ही  इसकी

जवानी की कहानी 

जाने किसकी है निशानी| 

कैसे हो तुम?

पागल को भी नहीं बख्शा, 

कैसे उसके गर्भ में, 

आया एक बच्चा? 

वह तो बच्चे की बचाने जान 

दौड़ पड़ी उस सड़क 

जो था वीरान और सुनसान| 

बच्चे ने आंखें खोली 

उसे सीने से लगाए 

वह तो चल पड़ी 

निस्वार्थ भाव से मुस्काए|

तुमने तो उसकी जान लूट ली,

और वो अपनी जान की 

परवाह ना करते हुए 

अपनी जान को बचाने 

के लिए दौड़ पड़ी|  

नियति तो देखो वही पागल है

जिसने बनाया पागल 

वो स्वतंत्र, फब्तियां कस रहा| 

वह तो पागल है

तय करो तुम क्या हो 

तुम्हारी गिनती किस श्रेणी में हो?

— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]