कद
कितना भी बढ़ गया कद मेंरा औकात में रहा।
हर मुशकिल दौर में मेंरा ज़मीर साथ में रहा।
के नर्म नाजुक कलियों से भी आशनाई है मेंरी,
इसी के बूते दौर ए खुशबू जज्बात में रहा।
अब के कौन मिलता है यहां बिना मतलब के,
दोस्तों ये इल्ज़ाम हर एक सौगात में रहा।
दौर ए मुफ़लिसी में भी हम बहुत अमीर रहे,
जब तलक के तुम्हारा हाथ मेंरे हाथ में रहा।
न ही बात हुयी न ही दिल मिला न ही हाथ मिले,
सागर फिर क्या मजा ऐसी मुलाकात में रहा।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”