नारी
सुना था
इतिहास खुद को दोहराता है
आज जान लिया
वक़्त भी पलट कर आता है
आज मान लिया
कल भी ये ही होता था
आज भी ऐसा होता है
और मुझे ये मालूम है
कल भी यूं ही होना है
पहले भी सम्मान खोया था
आगे भी सम्मान खोना है
सब कहते हैं, वक़्त तो
अब बदल ही गया है
पर नारी का पात्र तो
अब भी दया है
फिर क्या बदलाव आया है?
बस खोया, क्या कुछ भी पाया है!
किसी ने भी तो
उसे सम्मान न दिया
दी तो सिर्फ ज़िल्लत
अपमान ही किया
फिर क्यूँ आख़िर सब कहते हैं
कि नारी रूप है ईश्वर का?
जबकि उसे सहना ही है
हर ज़ुल्म इस जीवन का…
— प्रियंका अग्निहोत्री ‘गीत’