आग नफरत की
आग नफरत की जल रही है हर तरफ
इस आग से दामन अपना हम बचाएं कैसे
सहारा नही ह हमे किसी भी अपने का
सहारे किसी और के हम जिएं कैसे
नग़मे ज़िनदगी के ढूबे गैए हैं दरद में
तार ही टूट गैए हैं हमारे साज़ों के
आवाज़ भी कोई आती नही इन साज़ों से
इन साज़ों को अब हम बजाएं कैसे
भोझ ज़िनदगी केे ग़मों का बुहत ही बड गिषा है
इस भोझ को हम उठाएं तो उठाएं कैसे
किया किया खरीदा था हम ने ज़िनदगी के मेले के लिये
हिसाब सारी बातों का अब हम लगाएं कैसे
रूठ कर हम से बैठे हैे हमारे सनम
रूठे हुए मैहबूब को हम मनाएं कैसे
गिले शिकवे बुहत सारे हैं उन के दिलों में
नााराज़गी उन के दिलों की हम मिटाएं कैसे
सितम गर उन को कहें हम या मासूम –मदन —
बरबााद इस क़दर कर दिया है हम बताएं कैसे
बदनाम हो के रैह गैए हैं हम तो इस ज़माने में
सितम उन के दुनिया को हम गिनवाएं कैसे
— मदन लाल