सच्ची होली
तन रॅंगा बहुतों ने
मन जो रॅंगे
तब हो सच्ची होली।
बेशक ! कपड़े- लत्ते न भींगे
जब मन भींगे
तब हो सच्ची होली ।
जात-पात का भेद मिटे
ऊंच-नीच का भाव हटे
तब हो सच्ची होली ।
लाल -गुलाल सा
हर हृदय रंगे और मॅंहके
तब हो सच्ची होली ।
मन में द्वेष, बैर -भाव जो रहा भरा
फिर कोरी की कोरी होली
हृदय से हृदय जो रंग जाये
तब हो सच्ची होली ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा