सपने
सपने सिर्फ सपने बनकर रह जाते हैं
ख्वाबों के अर्थ भी जब बिखर जाते हैं
कोई नहीं देता साथ इस भरी दुनिया में
जिनके सर से साये भगवान के उठ जाते हैं
सुनो ,क्या कभी प्रेम को साक्षात देखा है आपने इस दुनिया में ,आप कहेंगे कि नहीं /लेकिन ये सच नहीं !क्योंकि प्रेम का साक्षात रूप माता-पिता हैं इस दुनिया में।माता पिता के अलावा कोई नहीं जो आपको समझ सके ,आपके दुःख में आपको धीरज दे सके, आपकी पवित्र भावनाओं की कद्र कर सके । एक बच्चा कितनी भी गलतियां करता है फिर भी माता पिता अपने बच्चे को माफ कर देते हैं क्यों ?क्योंकि उनका प्रेम अवर्णनीय है ,अद्भत है । प्रेम का सागर हैं वो जिसमें न डूबने के डर ,न भीगने की ग्लानि । साक्षात ईश्वर ही तो हैं माता -पिता जिनके कंधे पर सर रखकर आप रो सकते हैं ,उनकी गोद में अपनत्व पा सकते हैं वो भी बिना किसी गिले शिकवे के । पिता जो बच्चों की रीढ़ की हड्डी है जिसके बिना इस दुनिया में कोई भी ख्वाब पूरा करना असंभव है ,माता जिसकी प्रेम की छांव के बिना एक बच्चे का सर्वांगीण विकास असंभव है फिर कैसे कोई अपना सारा जीवन उनके बिना सोच सकता है । कभी सोचिए कि आप कितने भाग्यशाली हैं कि आपको इस दुनिया के भगवान मिले । ये दुनिया भी तो अपने ही कर्मों का लेखा जोखा है तो क्यों न अपने कल को आज ही संवार लिया जाए ।अपने माता- पिता को पूर्ण सम्मान और आदर देकर क्यों न आशीर्वाद का भंडार भर लिया जाए । कल सबको माता -पिता बनना है,आज जैसा करोगे कल वही आपकी संतान आपके साथ दोहराएगी । प्रकृति का नियम है जो जैसा बोयेगा वैसी ही फसल काटेगा ।
ज्यूँ साँस बिना देह का कोई अर्थ नहीं
ज्यूँ प्रेम बिना जीवन का कोई सार नहीं
गुजारनी तो पड़ती है जिंदगी सभी को
बिन मात-पिता खुशियों का संदर्भ नहीं
न मेरा पूछा न अपना बताया
न जाने क्यों गैरों को बढ़कर गले लगाया
प्रेम को भाव से ही जीता जा सकता है भौतिक वस्तुओं से कभी नहीं ।स्वर्ण ताप सहकर ही निखरता है । प्रेम को न तौला जा सकता है न नाप सकते ।जब प्रेम में अहंकार का भाव आ जाता है तब प्रेम प्रेम नही व्यापार बन जाता है । अहंकार और आत्मविश्वास में बहुत अंतर है । जहाँ प्रेम है वहाँ पीड़ा तो होगी ही ,क्योंकि पीड़ा का उपचार भी सिर्फ प्रेम ही है। जो पुण्य के लिए आपका साथ दे वो आपका साथी है लेकिन जो अपने प्रेम के लिए पाप का बोझ सहन करने को भी तैयार रहे वही सच्चा प्रेम है । प्रेम की प्रक्रिया स्वाभाविक है । इसे न कोई बेच सकता न खरीद सकता न जला सकता न गला सकता ,अजर अमर है प्रेम सदियों से और प्रलयकाल तक अमर ही रहेगा लेकिन माता-पिता का प्रेम इस दुनिया में जीने के लिए परम आवश्यक है ।
दर्द कोई समझता नहीं
प्यार की और कोई परिभाषा नहीं
सूना है सब इस दुनिया में
मात-पिता बिना किसी से आस नहीं
माता पिता ही इस दुनिया के भगवान हैं
अनजानों की इस भीड़ में
अपने कहाँ मिलते हैं
वक़्त बदल जाता है
सपने बस आँखें मलते हैं ।
रिश्ते नाते यूँ ही नहीं मिल जाते
कर्म ही तो हमारे सामने हैं आते
यूँ तो भीड़ है बहुत चारो ओर पर
हमदर्द यहां मुश्किल से मिल पाते
खुशियाँ गर ऐशोआराम की वस्तुओं से मिल सकती तो दुनिया में कोई दुख न होता । खुशी तो छोटी छोटी बातों से यूँ ही मिल जाती है लेकिन आज किसी को छोटी बातों से मतलब नहीं होता। सबको एक दूसरे से बढ़कर सामान की ख्वाईश रहती है ।इच्छाओं का कोई अंत नहीं ।जरूरतें पूरी हो सकती हैं लेकिन इच्छाएं अन्नत हैं । एक इच्छा के पूरी होते ही दूसरी इच्छा तुरंत खड़ी हो जाती है और व्यक्ति जो वस्तु प्राप्य है उसकी खुशी न मनाकर दूसरी वस्तु की पूर्ति में लग जाता है। माता-पिता ,परिवार सब को भूलकर ऐशोआराम की वस्तुओँ में आनंद और प्रेम ढूँढने लगता है ।
प्रेम प्यारा है जब ईश्वर को भी
क्यों नफरत में हम पड़ते हैं
प्रेम से देखो सृष्टि को अगर
पेड़ पौधे भी प्रेम से पनपते हैं
— वर्षा वार्ष्णेय