गीत/नवगीत

किसकी बारी है

चुनावों का बिगुल, बज चुका है
जंग का मैदान, अब सज चुका है
जनता को रिझाने,का दौर जारी है
देखते हैं इस बार किसकी बारी है ।।

बड़ी-बड़ी घोषणाएं, तो कर चुके
मुफ्त बांटने की,रस्म पूरी कर चुके
सब हैं जनता के, रहमो-करम पर
उसके मन में, क्या है बस यही, दुश्वारी है ।
देखते हैं, इस बार किसकी बारी है।।

यूं तो किसी ने,कोई कसर न छोड़ी
किये प्रण पूरे, और हेकड़ी तोड़ी
हवा के रूख का, है क्या ठिकाना
कब पलट, जाए बाजी जनता, सब पर, भारी है।
देखते हैं इस बार किसकी बारी है ।।

सारे तीर तर्कश के, आजमां लिए
कहीं सख्ती की,‌ कहीं बहला लिए
अंत में गद्दी, किसके हाथ लगेगी
सबके, अपने-अपने दावे अपनी रायशुमारी है।
देखते हैं, इस बार किसकी बारी है।।

कुछ आपस में, लड़ने में व्यस्त हैं
तो कुछ, मान-मनौव्वल,से त्रस्त हैं
एक-दूजे की पोल, खोल रहे सब
दूध का धुला, न कोई सब वोट के, पुजारी हैं।
देखते हैं, इस बार किसकी बारी है।।

भ्रष्टाचार अब भी,मुंह बाए खड़ा है
कोई कुछ भी कहे,यह मुद्दा बड़ा है
ऐसा नही कि,जानते-समझते नहीं
पर मानते नहीं यह कैसी, समझदारी है।
‌‌ देखते हैं, इस बार किसकी बारी है।।

लोकतंत्र का है, यह महापर्व

वोट के अधिकार, का है उत्सव
इसको छुट्टी की, तरह न जाने
मताधिकार को , महत्वपूर्ण मानें
कुछ अपनी भी, जिम्मेदारी है।
देखते हैं, इस बार किसकी बारी है।।

कुछ अपनी भी, जिम्मेदारी है
देखते हैं, इस बार किसकी बारी है।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई