पुस्तक समीक्षा – जागो भारत
आजकल इन तीन शब्दों को खूब मजाक का विषय बना दिया गया है तथा दुःखी हृदयों से लोगों की सहज अभिव्यक्ति इस रूप में होती है-‘सौ में से निन्यानवे बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान।’ कितनी विवशताएं, विडंबनाएं, दर्द, दुख, आहें एवं कुछ कर गुजरने की आग इस वाक्य में छिपी हुई है? साधारणजन न बेईमान होता है, न चोर-लुटेरा। राजा ही उसे ईमानदार, देशभक्त, भ्रष्ट या बेईमान व चोर-लुटेरा आदि बनने को विवश करता है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ ये चार शब्द देवभाषा संस्कृत में लाखों वर्षों से गूंजते आए हैं। इनमें जीवन-दार्शनिकों के लाखों वर्षों का अनुभव का बोल रहा है। यदि राजा, वीर, देशभक्त, राष्ट्रवादी एवं ईमानदार है तो उस राष्ट्र के लोग भी वीर, देशभक्त एवं ईमानदार होंगे ही और यदि राजा कायर, भ्रष्ट, लंपट, बेईमान एवं लूटेरा है तो उस राष्ट्र के लोग भी ऐसे ही बन जाएंगे यानि कि वे भी जमकर बेईमानी व विश्वासघात करेंगे तथा संपूर्ण राष्ट्र को अपनी निजी जागीर समझकर उसका खूब शोषण करेंगे। कुछ सदियों पूर्व जो राष्ट्र विश्व का प्रत्येक क्षेत्र में सिरमौर, पथ-प्रदर्शक, विश्वगुरु एवं शक्ति का भंडार था-वहीं आज इन नेताओं की लूट, कायरता, बेईमानी एवं लंपटता के कारण विश्व का सबसे भूखा, बदहाल, गरीब, कर्जवान, भ्रष्ट एवं आतंकवाद का अड्डा बन गया है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ का भारत एक ज्वलंत उदाहरण है। आज भारत में जो कुछ हो रहा है, वह सब हमारे नेताओं का ही किया-धरा है। 15 अगस्त 1947 से पूर्व कितने मनमोहक दृश्य लोगों को दिखलाए गए थे-लेकिन वैसा कुछ भी हमारे देश में नहीं हो रहा है। नेता, धर्मगुरु, पुरोहित, उद्योगपति, अभिनेता, खिलाड़ी, शिक्षक आदि सभी इस राष्ट्र को लूट रहे हैं-किसी को भी इस राष्ट्र की सुध नहीं है। अपना स्वार्थ पूरा हो जाए, यह राष्ट्र जाए भाड़ में। लोकतंत्र व गणतंत्र के नाम पर जो लूट व आतंक का नंगा नृत्य यहां भारत में चल रहा है, वह अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलेगा। राष्ट्र की अधिकांश सुरक्षा तथा राष्ट्र का अधिकांश वैभव विदेशियों के कदमों में फैंक दिया गया है। यदि अब व्यवस्था ठीक हो जाए यानि अब राजा ठीक हो जाए तो हमारा राष्ट्र एकदम से विश्व का सर्वोच्च, संपन्न, अग्रणी, शक्तिशाली, विश्वगुरु एवं मार्गदर्शक राष्ट्र बन जाए। अपनी इस पीड़ा को, अपने इसी दुख को, अपने इसी भारत के प्रति प्रेम को, अपनी राष्ट्रभक्ति को, अपनी सभ्यता, संस्कृति, जीवन-मूल्यों, दर्शन व राष्ट्रभाषा के प्रति प्रेम को प्रस्तुत पुस्तक ‘जागो भारत’ में अभिव्यक्त करने का राष्ट्रभक्तिपूर्ण प्रयास लेखक महोदय ने सफलतापूर्वक किया है। पुस्तक में इसकी प्रतिध्वनि पदे-पदे परिलक्षित हो रही है! लेखक ने जिस बेबाकी, निष्पक्षता एव सहजता से प्रस्तुत पुस्तक में अपनी राष्ट्रभक्ति एवं राष्ट्रप्रेम को अभिव्यक्ति दी ही है वह आज के साहित्यिक संसार में देखने को नहीं मिलती है! यदि कबीर के शब्दों में कथन करें तो ‘ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया’ वाली पंक्ति सार्थक होती प्रतीत होती है! बिना किसी दुर्भावना, राग एवं प्रचलित साहित्य धारा का अंधानुकरण किये लेखक ने अपने राष्ट्रवादी दर्शनशास्त्र को शब्दों में पिरोया है! लेखक की कामना है कि हमारा यह भारत राष्ट्र एक बार फिर से विश्वगुरु, संपन्न, समृद्ध, वीर, पथप्रदर्शक, ध्यान व योग का गुरु एवं करुणा के साथ-साथ देशद्रोहियों व आतंकवादियों को त्वरित सबक सिखाने वाला एवं भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र बने-इसी मंगल-भावना के साथ यह प्रस्तुत कृति पाठकों के हाथों में प्रस्तुत की गई लगती है! पुस्तक आकार में छोटी होते हुये भी अपने उद्देश्य में विराट भावना लिये हुये लगती है! ऐसी सार्थक कृति के लेखन के लिये लेखक महोदय को धन्यवाद है!
पुस्तक – जागो भारत
लेखक : आचार्य शीलक राम
प्रकाशक : आचार्य अकादमी (पंजी.)
पृ. : 90
मूल्य : 200/-
ISBN : 978-93-5067-047-7
समीक्षक : डॉ. सुरेश कुमार
राजकीय महाविद्यालय सांपला
रोहतक (हरियाणा)