गौरैया की व्यथा
चूं-चूं करती चौबारे पर,
एक गौरैया आई,
मुझको बड़ी बहिन समझ उसने मुझे,
अपनी व्यथा सुनाई।
खेतों में विष भरा हुआ है,
ज़हरीले हैं ताल-तलैया,
दाना-दुनका खाने वाली,
कैसे बचे यहां गौरैया?
अन्न उगाने के लालच में,
ज़हर भरी वे खाद लगाते,
खाकर जहरीले भोजन को,
रोगों को हम पास बुलाते।
घटती जाती हैं दुनिया में,
अपनी ये प्यारी गौरैया,
दाना-दुनका खाने वाली,
कैसे बचे यहाँ गौरैया?
( 20 मार्च “विश्व गौरैया दिवस” विशेष)
— लीला तिवानी