लघुकथा – पीली साड़ी
“जया दीदी, आज आप पीली साड़ी नहीं पहनीं हैँ?आज तो हल्दी है न?”
विभा ने जया से पूछा।
“हां, क्या है तुम्हारे जीजा जी को पीला रंग बिल्कुल पसंद नहीं है।” जया ने कहा।
ओह!ऐसी बात है।” विभा ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा।
“पर विभा,तुमने भी तो आज पीली साड़ी नहीं पहनी है क्यों?” जया ने पूछा।
“सच बताऊँ दीदी, क्या है मेरे ससुर जी को कैंसर है।उन्हें मुंबई के हॉस्पिटल में एडमिट कराया था।उनके इलाज में हमारी सारी जमा पूंजी खर्च हो गई।यहां तक कि हमारा मकान भी गिरवी रखा हुआ है। मेरे पति का भी बिजनेस कोरोना काल से ठीक नहीं चल रहा है ले देकर दाल-रोटी का जुगाड़ हो रहा है।ऐसे में मैं हल्दी के लिए पीली साड़ी, मेहंदी के लिए हरी साड़ी और रिसेप्शन के लिए ड्रेस कोड कहाँ से खरीद पाऊंगी?।जो है सो पहन लिया।मैं तो इसी कारण शादी में भी नहीं आ रही थी पर सगी मौसी की बेटी की शादी है तो आना पड़ा।नहीं तो लोग क्या कहते?”विभा ने दुःखी स्वर से कहा।
“सच है विभा, आज विवाह में एक नई कुरीति ने जन्म ले लिया है।मेंहदी में हरी साड़ी, हल्दी में पीली साड़ी और परिवार के सदस्यों का एक सा ड्रेस कोड फिर ये नई बला प्री वेडिंग।इन सबने तो विवाह का बजट बिगाड़ दिया है। जिनके घर पर शादी है वो तो खर्च करते ही हैं परंतु इस ड्रेस कोड के चक्कर में अन्य परिजन भी परेशान होते हैं।बेवजह उनका भी खर्च इस विवाह में बढ़ जाता है। जया ने गंभीरता पूर्वक कहा।
“हां दीदी,आप बिल्कुल सही कह रही हैं पर इस कुरीति को हटाएगा कौन?आज तो मध्यम वर्गीय और गरीब परिवार भी अपनी पूंजी बेचकर ,कर्ज लेकर इस दिखावे के चक्कर मे हैं। हर कोई शादी में अपनी शान दिखाना चाहता है। “विभा ने मुस्कुराते हुए कहा।
“हां विभा, इस कुरीति को समाज से अब दूर करना जरूरी है। “जया ने कहा।
“हां ,पर यह कुरीति कैसे दूर होगी?यह तो हमारी संस्कृति में जैसे घुल-मिल गई है।”विभा ने कहा।
“हम सब जैसे तुम और मैं इस कुरीति को दूर करेंगें। जैसे आज हम लोगों ने हल्दी में पीली साड़ी नहीं पहनी है ।ऐसे ही।”
यह कहकर जया हँस पड़ी।विभा भी मुस्कुराने लगी।
— डॉ. शैल चन्द्रा