लघुकथा – फटा ब्लाउज
“बहू,सुई में धागा डाल दोगी क्या?” सत्तर बरस की बूढ़ी सास ने बहू से कहा।
ओह!अभी आपको इस उम्र में क्या सिलना है? रूही से कहो डाल देगी।मैं अभी बिजी हूँ।”बहू ने उपेक्षा से कहा।
बूढ़ी सास अब खुद ही सुई में धागा डालने की कोशिश करने लगी पर आंखों में तो मोतियाबिंद उतर आया है।सब कुछ धुंधला दिखता है।सुई में धागा कैसे डल पायेगा?
बूढ़ी सास ने अपने फटे हुए ब्लाउज की ओर बेबसी से देखा। कितनी बार वह बहू-बेटे को फटे ब्लाउज के बारे में बता चुकी है पर हर बार बहू कहती है-“ओह!अम्मा जी, अब आपको कहाँ जाना है?किसे दिखाना है? थोड़ा सा तो दरका है। अभी पहन लो।देखतीं नहीं घर में सौ खर्चे हैं। आपका खर्चा तो और भी ज्यादा है। कभी चश्मा बदलो तो कभी महंगी दवाइयां। आप समझती क्यों नहीं? अगले महीने तनख्वाह मिलेगी तो दूसरा ब्लाउज सिलवा देंगे।”
अब तो ब्लाउज जर्जर हो चुका है उन्हीं की तरह। बूढ़ी सास फटा ब्लाउज पहन कर आँचल से ढंक लेती है ताकि उनकी इज्जत ढंकी रहे।
रूही सुई में धागा डालकर कहती है-” क्या दादी, अब इस ब्लाउज को फेंक दो। ये तो बहुत ज्यादा फट गई है।”
बूढ़ी सास ने रूही की बात सुनकर कहा-” नहीं बिटिया इसे अभी नहीं फेंक सकती।अगले महीने जब नया ब्लाउज आएगा तो इसे पहनना बंद कर दूंगी।” यह कहती हुई वे कांपते हाथों से जैसे-तैसे ब्लाउज की सिलाई करने लगीं।
तभी डिलीवरी बॉय की आवाज आंगन से आई-“भाभी जी, आपका पार्सल है।”
बहू दौडती हुई आंगन में आई और पार्सल लेकर अपने कमरे में चली गई।
बूढ़ी सास ने बहू के कमरे में झांका।देखा कि बहू कोई महँगी साड़ी को पहन कर आईने में देख रही थी। तभी बहू की नजर सास पर पड़ी।वो क्रोध से बोली-“क्या अम्मा, आप अब ताक झांक भी करने लगीं हैं।अरे!हमें तो सभा-सोसाइटी में जाना पड़ता है।
हमें तो सब देखते हैं। अब इस उमर में आपको कौन देखेगा? आप फटे-पुराने से अभी काम चलाओ।”
बूढ़ी सास की आंखों में आसूँ झिलमिलाने लगे। वे मन ही मन बुदबुदाई -“सच है हमें कौन देखेगा?।”
डॉ. शैल चन्द्रा