अधे़ड़ावस्था में आहार
अधेड़ावस्था के व्यक्तियों से हमारा तात्पर्य 45 से 60 वर्ष तक की उम्र के ऐसे लोगों से है, जिनकी पाचनशक्ति बहुत निर्बल नहीं हुई है और जिनके दाँत सही हैं अर्थात् जो भोजन को भली प्रकार चबा सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को अपने आहार के चुनाव में सावधानी रखनी पड़ती है, क्योंकि अब वे युवा नहीं रहे हैं, इसलिए सब कुछ खाकर पचा लेने की सामथ्र्य उनमें नहीं होती।
अधेड़ उम्र के लोगों को ऐसे भोजन की आवश्यकता होती है, जिसको वे सरलता से पचा सकें और जो उनके शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति भी करता रहे। इस उम्र में मोटापा आने की संभावना सबसे अधिक रहती है, क्योंकि उनकी शारीरिक फुर्ती कम हो जाती है और आलस्य के कारण शरीर अधिक आराम की माँग करता है। इसलिए उनके आहार में ऐसी वस्तुएँ होनी चाहिए, जिनमें कार्बोहाइड्रेट और वसा कम हो तथा विटामिन और खनिज पर्याप्त हों, ताकि शरीर में इन चीजों का अभाव न हो।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अधेड़ावस्था का आदर्श भोजन चार्ट निम्न प्रकार हो सकता है-
जलपान (प्रातः 8-9 बजे) – दलिया, खिचड़ी, इडली, वड़ा, उपमा, अंकुरित अन्न, मौसमी फल, ब्रेड-बटर, काॅर्नफ्लेक आदि में से कोई एक बदल-बदलकर लें। साथ में अपनी रुचि के अनुसार एक कप दूध या मठा (छाछ) ले सकते हैं। यदि चाय से बच सकें तो बेहतर है, नहीं तो दूध या मठा की जगह चाय ले सकते हैं, पर उसमें अधिक चीनी न हो।
दोपहर का भोजन (दोपहर 1-2 बजे)- एक या दो सब्जी, रोटी, दही, सलाद। इनमें एक हरी सब्जी अवश्य हो। कभी-कभी दाल-चावल भी ले सकते हैं। यदि चाहें तो इनके साथ एक मिठाई, एक पापड़ और अचार भी ले सकते हैं। महीने में एकाध बार पूडी-कचै़ड़ी, चोखा-बाटी और मूँग की दाल का चीला भी खा सकते हैं, पर अपनी पाचन शक्ति का ध्यान रखकर।
जलपान (सायं 4-5 बजे)- कोई मौसमी फल या फलों का जूस। कभी-कभी आलू, प्याज, फूल गोभी, पालक आदि के पकौड़े या समोसे या नमकीन भी खा सकते हैं, पर इनकी मात्रा सीमित ही रखें। इनको भोजन की तरह न लें।
रात्रि भोजन (रात्रि 7-8 बजे)- एक सब्जी और रोटी। कभी-कभी भरवाँ या सादा पराँठे या डोसा भी ले सकते हैं। पर रात्रि को दाल-चावल खाना उचित नहीं। रात में दही भी नहीं लेना चाहिए। तन्दूरी रोटी से बचें।
इस उम्र में कई चीजों का परहेज करना उचित रहता है, जैसे बाजारू फास्टफूड, पिज्जा, बर्गर, मोमोज, भटूरे आदि, क्योंकि न केवल ये चीजें पचने में बहुत भारी होती हैं, बल्कि इनमें प्रोटीन के अलावा शरीर के लिए आवश्यक कोई तत्व नहीं होता। इसलिए इनको जंक फूड या मुर्दा भोजन कहा जाता है।
ये सब वस्तुएँ अपनी भूख के अनुसार ही लेनी चाहिए। भूख से थोड़ा कम खाना बेहतर है, लेकिन भूख से अधिक कभी न खायें, चाहे वस्तु कितनी भी स्वादिष्ट हो और मुफ्त में मिल रही हो। यदि कर सकें, तो सप्ताह में एक दिन केवल जल और फलों के जूस या सूप पर रहें। इससे सप्ताहभर में हुई खान-पान की गलतियों का निवारण हो जाता है।
खाया हुआ भोजन आपके अंग लगे और शरीर स्वस्थ रहे, इसके लिए प्रतिदिन कुछ टहलना और व्यायाम करना आवश्यक है। इनकी चर्चा अगले लेख में की जाएगी।
— डाॅ. विजय कुमार सिंघल
फाल्गुन शु. 14, सं. 2080 वि. (24 मार्च, 2024)