होली
अम्बर पर यौवन चढ़ आया,
अवनि हँसी-मुस्काई।
कहे कूकती कोयल काली,
आई होली आई।
कण कण में मधु-मिश्री जैसी,
महके मीठी बोली।
सज-धजकर ऋतु सुखद सुहानी,
चली मनाने होली॥
अवध हँसे ब्रज रास रचाये,
झूम रही है काशी।
तीनो लोक रँगे रंगों से,
नृत्य करें अविनाशी ॥
खुशियों के रंगों से रँगकर,
जन-मन करे ठिठोली।
ढोल-नगाड़ों सँग इठलाती,
धूम मचाती होली॥
उमड़ी टोली हुरियारों की,
तोड़-ताड़ हर बाधा।
बरसाने में रँग बरसाने,
किशन चले बन राधा।
झूम-झूम कर रति अनंग ने,
भाँग आज फिर घोली।
रंग-रंगीला जीवन करने,
हँसती आती होली॥
होली का उपहार दिया यह,
कितना सुखकर प्यारा।
अभिनंदन ऋतुराज तुम्हारा,
जीत लिया हिय सारा।
राग-रंग में सिक्त भाव ने,
तार हृदय के जोड़े।
अमिट छाप जो छोड़े उससे,
कौन ‘अधर’ मुख मोड़े॥
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’