निर्णय
निर्णय
“चलो, इसी वक्त हम थाने चलकर बलात्कारियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराते हैं।” श्रीमान् जी के स्वर में आक्रोश था।
“पागल हो गए हैं क्या आप ? हमारी बेटी के साथ गैंगरेप हुआ है, ये जानने के बाद समाज में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी ? पुलिस भी तरह-तरह के ऊटपटांग सवाल करके परेशान करेगी, सो अलग। ऊपर से बलात्कारियों ने बलात्कार का विडियो बनाकर धमकी दी है कि यदि मुंह खोलेगी, तो वे उसे वायरल कर देंगे। जरा दिमाग से काम लीजिए।” श्रीमती जी के स्वर में भय था।
“मैं दिमाग से ही काम ले रहा हूँ। हम रिपोर्ट दर्ज कराने में जितनी देर करेंगे, हमारे लिए वह उतनी ही हानिकारक सिद्ध होगी। आज यदि हम चुप बैठ गए, तो बलात्कारियों के हौंसले और भी बुलंद हो जाएँगे। और फिर क्या गारंटी है कि वे उस विडियो की आड़ में हमें बाद में ब्लैकमेल नहीं करेंगे ?” श्रीमान् जी ने समझते हुए कहा।
“लेकिन अगर वह विडियो वायरल हो गया तो…” श्रीमती जी आशंकित थीं।
“देखो, हमारी बेटी के साथ गैंगरेप हो गया, हमारे लिए इससे बड़ी बात विडियो का वायरल होना कदापि नहीं हो सकता। मैं शांत बैठने वाला नहीं हूँ। दोषियों को दंड दिए बिना मैं चुप नहीं बैठूँगा। तुम्हें हमारे साथ में चलना है तो चलो, वरना मैं अपनी बेटी को लेकर थाने चला।” श्रीमान् जी ने अपना अंतिम निर्णय सुना दिया।
“चलिए, मैं आप लोगों के साथ चलने को तैयार हूँ।” श्रीमती जी ने कहा और उन तीनों के कदम दृढ़ निश्चय के साथ थाने की ओर बढ़ चले।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़