मुक्तक/दोहा

माँ दुर्गा के दोहे

दुर्गा माँ तुम आ गईं,हरने को हर पाप।

संभव सब कुछ आपको,तेरा अतुलित ताप।।

सद्चिंतन तजकर हुआ,मानव गरिमाहीन।

दुर्गा माँ दुर्गुण हरो,सचमुच मानव दीन।।

छोटी-छोटी बच्चियाँ,हैं तेरा ही रूप।

उन पर भी तुम ध्यान दो,बाँट सुरक्षा-धूप।।

हम सब हैं तेरा सृजन,तू सचमुच अभिराम।

दुर्गा माँ तेरे सदा,हैं नित नव आयाम।।

वे पल पावन हो गए,जिनमें तेरा नाम।

यह जग तेरा है सदा,दुर्गा पावन धाम।।

दुर्गा माँ तुमने किया,मार असुर कल्याण।

नौ रूपों में तुम रहो,पापी खाते बाण।।

सिंहवाहिनी दिव्य तुम,हम सब तेरे लाल।

दर्शन दो,हे माँ!करो,हमको आज निहाल।।

वैसे तो तुम वर्ष भर,देती हो उजियार।

इसीलिए पाया नहीं,कभी पुत्र यह हार।।

असुर मारकर धर्म को,ख़ूब किया आबाद।

सबके जीवन से दिया,मिटा सकल अवसाद।।

हे माँ जगदम्बे! नमन्,विनती बारम्बार।

दिया आपने विश्व को,दिव्य,नवल उपहार।।

— प्रो. (डॉ-) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]