लघुकथा

सपने

“आज विधिता का पहला कहानी संग्रह “मेरे सपने” छपकर आ गया है.” उसकी सास मेरी सहेली पार्वती गोयल का फोन था.
“अरे वाह, बहुत खुशी की बात है!”
“लीला जी, इसका श्रेय तो आपको ही जाता है. बाकी बात शाम को पॉर्क में पॉर्टी पर.” उसने फोन रख दिया.
मेरे सामने पांच साल पहले की रील चलने लगी.
पार्वती मेरे ब्लॉग्स पढ़ती थी और प्रतिक्रिया भी लिखती थी.
“विधिता, लीला जी ने एक कहानी शुरु की है, उसको गुरमेल भमरा ने आगे बढ़ाया है, आगे तुम भी बढ़ा दो.” एक दिन उसने अपनी बहू से कहा.
“मम्मी जी, आंटी के सामने मेरा लिखना कहां टिकेगा!”
“कोशिश तो करो, संकोच करने से क्या काम बनेगा?”
विधिता ने कहानी पूरी की और वह कहानी सबको बहुत पसंद आई. हो गई कहानी-संग्रह की शुरुआत!
संकोच छोड़ने से ही उसके सपने पूरे हुए.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244