गज़ल
जिधर देखिये उधर ही भ्रष्टाचार हैं
फिर भी कहते इसको की शिष्टाचार हैं
कल तक तो पक्के दोस्त थे दोनों ही
आज उनके बीच देखिये दीवार हैं
जो समझता नहीं देश प्रेम की बातें
उसको तो समझाना यहां बेकार हैं
पद का लाभ क्या मिल गया उसको यारों
अब इंसान से नहीं रिश्वत से प्यार हैं
राजनीति तो लाभ का सौदा हुआ अब
बिना पूंजी का नेता का व्यापार हैं
चमचागिरी करें जो हरदम ही यारों
सही मायने में नहीं वो फ़नकार हैं
थमा मत देना उसके हाथों में नाव
पास उसके तो कमजोर पतवार हैं
खबरें कभी सही छापता है ये नहीं
बिका हुआ इसका समूचा अखबार हैं
— रमेश मनोहरा