गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

देखना वादों का मौसम, आ गया फिर से यहाँ

ख़्वाब अंगूरी अभी,  लटका गया फिर से यहाँ

सुन रहे नारे,       मकानें   अब बनेंगे हर जगह

झोपड़ी का मन अभी, भरमा गया फिर से यहाँ

भ्रष्ट शिक्षा-तंत्र की,           बेरोजगारी मंच पर

ताज दे अल्पज्ञ को,    साजा गया फिर से यहाँ

आय दूनी हो किसानों की,     मगर बेहाल वह

अब तमाशा देख वह,  गरमा गया फिर से यहाँ

सावधानी रख,   अगर किस्मत बदलनी है तुझे

फेंक वह तो जाति का, पासा गया फिर से यहाँ

— मांगन मिश्र ‘मार्त्तण्ड’

मांगन मिश्र 'मार्त्तण्ड'

प्रधान संपादक " संवदिया ' साहित्यिक त्रैमासिक, फारबिसगंज-854318 (बिहार) मो. : 9973269906 मेरी अब तक 9 पुस्तकें प्रकाशित हैं तथा राष्ट्रीय स्तर की कई दर्जन पत्र/पत्रिकाओं में गीत, ग़ज़ल, नवगीत, कविता, दोहे, कहानी, आलेख, यात्रा-वृत्तांत तथा समीक्षाएँ निरंतर प्रकाशित हो रही हैं।