गीतिका
देखना वादों का मौसम, आ गया फिर से यहाँ
ख़्वाब अंगूरी अभी, लटका गया फिर से यहाँ
सुन रहे नारे, मकानें अब बनेंगे हर जगह
झोपड़ी का मन अभी, भरमा गया फिर से यहाँ
भ्रष्ट शिक्षा-तंत्र की, बेरोजगारी मंच पर
ताज दे अल्पज्ञ को, साजा गया फिर से यहाँ
आय दूनी हो किसानों की, मगर बेहाल वह
अब तमाशा देख वह, गरमा गया फिर से यहाँ
सावधानी रख, अगर किस्मत बदलनी है तुझे
फेंक वह तो जाति का, पासा गया फिर से यहाँ
— मांगन मिश्र ‘मार्त्तण्ड’