कविता

आदमी का चरित्र

कैसा है आदमी कैसा उसका चरित्र

देखने में भोला भाला काम हैं विचित्र

दिमाग और सोच में भरी है गंदगी

फिर भी अपने आप को कहता है पवित्र

आदमी आदमी में फर्क है 

कोई है पैसे वाला कोई है फकीर 

जो भी जिसको जीवन में मिला 

सबकी अपनी अपनी है तकदीर

कोई दूसरे की सेवा में रहता है खुश

दूसरों का हक मार जाता है कोई

बड़ा बनकर भी कोई जमीन से है जुड़ा रहता

सफलता मिलते ही अहंकार में डूब जाता है कोई

चेहरे की मासूमियत से किसी का पता नहीं चलता

किसी के दिल में क्या है यह तो वही जाने

काम निकल जाने पर कोई पहचानता नहीं

सामने देखकर भी बन जाते हैं अनजाने

कैसा बन गया है आदमी का चरित्र

हर तरफ है धोखा ही धोखा 

ऊन निकालने की फिराक में रहते हैं भेड़ से सारे 

बस मिलना चाहिए किसी को भी मौका

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र