यह कैसी राजनीति
वादे करते कितने सारे, आश्वासन भरपूर।
मोह पाश बॅंध जाती जनता, कैसे होंगे दूर।।
स्पर्श चरण कर माथ लगाते, करते मिथ्या बात।
शब्द शहद सा निकले मुख से, मन में रखते घात।।
मुफ़्त मिलेंगे बिजली राशन, निर्धन को आवास।
चाल लोमड़ी की चलते फिर, बन जाते हैं खास।।
कर्ज मुक्ति की लोक लुभावन, खींचे सारा वोट।
महिलाओं को बाॅंटें रुपया, भरे तिजौरी नोट।।
कार्य पूर्णता बात दूर की, होती है घुसपैठ।
भ्रष्टाचार बढ़ावा देते, चुप कुर्सी में बैठ।।
होड़ मची है राजनीति की, खेले नेता खेल।
लगे दाॅंव धन यश वैभव का, लोग रहे हैं झेल।।
चिकनी चुपड़ी में ना आना, मत रहना खामोश।
भटक गए हैं राजनीति दल, लाना उनको होश।।
साक्षर भारत का अब देना, जनता तुम पैगाम।
काम करें सब जनहितकारी, बने नया आयाम।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”