गीत – मोहन प्यारे की खोज
मंदिर मस्जिद चर्च गुरूद्वारे
नदिया परबत जंगल सारे
ढूँढ ढूँढ़ थक हार गया मैं
कहीं मिले ना मोहन प्यारे |
तभी अचानक एक बूढ़े को
हाथ पकड़ पथ पार कराया |
सर्द रात में सड़क पे सोते
बच्चे को कम्बल ओढाया |
भूखे को खुद की रोटी दी
प्यासे को पानी पिलवाया |
एक अन्जान दुखी रोते को
सच्चे दिल से गले लगाया |
दिल को चैन सुकून मिला
जाने क्यूँ मेरा मन हरषाया
ताज्जुब था हर बार लगा ज्यों
साथ खड़ा हो कोई साया |
नन्हा बच्चा हँसा तो लगा
मुझे देख मोहन मुस्काया
फिर तो मैंने कदम कदम पर
देखी उसकी मोहक छाया ।
मात पिता के प्यार में देखा
फूलों के संसार में देखा
सूरज चाँद की किरणों में था
हरेक दिशा हर द्वार पे देखा ।
नदियों की कलकल में वो था
हर माँ के आँचल में वो था
कोई जगह मिली न खाली
हर घटना हर पल में वो था ।
कितने भरम पालकर मैंने
अपना कितना वक्त गंवाया
पंडित फादर और मौलवी
सबने मुझे पथ से भटकाया ।
आप भी मेरी बातें मानो
इस मुरख को ज्ञानी जानो
कण कण में बसता है मोहन
मिल जायेगा दिल में ठानो ।
— महेश शर्मा धार