लघुकथा

दान

सहसा विद्यालय में छात्रों की संख्या दूनी हो गयी थी।किसी भी बोर्ड से मान्यता प्राप्त न होने के कारण मदरसे के छात्र समायोजित किए गए थे।ऐसे में रमजान का समय,शुक्रवार की प्रार्थना के बाद एक छात्र ने गरीब छात्रों की सहरी व अफ्तारी हेतु मार्मिक अपील की-
“रोजा किए हुए गरीब बच्चों को देखिए,कितना नूर आ जाता है चेहरे पर।अगर आप सभी अपने जेब खर्च का कुछ हिस्सा इनको दान दे देंगे तो अल्लाताला आपको सबाब देंगे।”
भीड़ में से कई स्वर उभरे,
“सपोलों को दूध न पिलाना, हमें ही काटेंगे।”
“अल्लाताला की नजरों में हम काफ़िर हैं।सबाब की जगह हमारा कबाब बनाएंगे।”
“हर साल जो एक बच्चा पैदा कर रहे उन वालिदैन से माँगों।”
“हम दान अपने देश और सैनिकों को देंगे।”

— निवेदिता श्रीवास्तव