ऐ मेरे लोकतंत्र
ऐ मेरे लोकतंत्र
तेरा इश्क़ भी
कितना अत्याचार करता है..
कभी जात के नाम पर तो
कभी रंग के साथ
सर ए राह छेड़-छाड़ करता है ..
ऐ मेरे लोकतंत्र
तेरा इश्क़ भी
कितना शर्मसार करता है ..
कभी वोट के नाम पर तो
कभी धर्म के साथ
अक्सर बलात्कार करता है ..
कभी जांच के नाम पर तो
कभी जिस्म के साथ
खुले-आम व्यापार करता है ..
ऐ मेरे लोकतंत्र
तेरा इश्क़ भी
कितना अत्याचार करता है ..
— के एम भाई