कविता

ऐ मेरे लोकतंत्र

ऐ मेरे लोकतंत्र

तेरा इश्क़ भी

कितना अत्याचार करता है..

कभी जात के नाम पर तो

कभी रंग के साथ 

सर ए राह छेड़-छाड़ करता है ..

ऐ मेरे लोकतंत्र

तेरा इश्क़ भी

कितना  शर्मसार करता है ..

कभी वोट के नाम पर तो

कभी धर्म के साथ

अक्सर बलात्कार करता है ..

कभी जांच के नाम पर तो

कभी जिस्म के साथ 

खुले-आम व्यापार करता है ..

ऐ मेरे लोकतंत्र

तेरा इश्क़ भी

कितना अत्याचार करता है ..

— के एम भाई 

के.एम. भाई

सामाजिक कार्यकर्त्ता सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्यात्मक लेखन कई शीर्ष पत्रिकाओं में रचनाये प्रकाशित ( शुक्रवार, लमही, स्वतंत्र समाचार, दस्तक, न्यायिक आदि }| कानपुर, उत्तर प्रदेश सं. - 8756011826