जाग ! जाग ! हे युवा जाग !
जाग ! जाग ! हे युवा जाग !
है चिंगारी तुझमें ही आग
तू चले तो धरती थर्रायी
कोई माप सके ना गहराई
तुझमें सहस्त्र हाथी के बल
बस बचा जागना ही केवल
क्यों नहीं जागना चाह रहा
दायित्व उठा क्यों भाग रहा
मस्तिष्क तुम्हारा है उर्वर
बन सकते हो सबका तरुवर
हो नहीं आज अब चूक कोई
हाथों तेरे बंदूक कोई
खुद के भुजबल पर हो यकीन
मुख करते क्यों अपना मलीन
इक रखना था रख लिए तीन
दो ले आओ उनसे तू छीन
तू न्याय त्वरित कर सकता है
मुरझाए हरित कर सकता है
कुछ मुरझाए कुछ खिले हुए
कुछ आपस में हैं मिले हुए
कोई जोड़-तोड़ शासन करता
कोई छोड़-छोड़ शासन करता
कोई अलग नहीं सब एक यहां
कोई बचा नहीं जो नेक यहां
सत्ता को अपने हाथ करो
जन-जन को अपने साथ करो
सिंहासन आज कराह रहा
तुझ जैसे को ही चाह रहा !
— राजेश पाठक