दिन मेरे बाप का
वो इनका है,
उनका है,
मेरा है,
और है आपका,
चौदह अप्रैल का दिन है
पूरी तरह मेरे बाप का,
उस पिता ने मेरे लिए
अपने बच्चों को खोया था,
पढ़ने लिखने और
मेरे उद्धार के खातिर
कई कई रात नहीं सोया था,
जितना तड़पाया था उसे
अश्पृश्यता के रखवालों ने,
हौसला तोड़ रखा था तब
मनुवादियों के कुटिल चालों ने,
अड़कर खड़े हुए भीम जी
जैसे खड़ा हुआ कोई खंभा था,
ज्ञान का सूरज हौसलेवान वो
दुनियाभर का एक अचंभा था,
मिटाना तो चाहा धूर्तों ने बहुत
उनके नाम,काम,अहसान को,
पर सफल न हो सके वे कपटी
न रोक सके भीम गुणगान को,
भुगतना पड़ेगा उन सबको एक दिन
हर सजा अपने पाप का,
चौदह अप्रैल का दिन है
पूरी तरह मेरे बाप का,
पाखंडी पाखंड को अपने
आगे ही बढ़ाना चाह रहा,
संवैधानिक तानो बानो से
मनुवादी अब भी कराह रहा,
भीम घोष ज्ञान प्रवाह पुंज
उजाला जग में जगमगायेगा,
नीला आकाश नीली दरिया
रंग नीला फैलता जाएगा,
टुकड़े टुकड़े बंट जाएंगे
संविधान से जो टकराएगा,
चमत्कार की थोथी बातें अब
खुद ही जहां से मिट जाएगा,
समता बंधुता दिखेगा सदा
सुनायेगा बातें हर जज्बात का,
चौदह अप्रैल का दिन है
पूरी तरह मेरे बाप का।
— राजेन्द्र लाहिरी