ग़ज़ल
जीत की होती खुशी ले मजा भी हार का।
प्यार में मिलते नजारे चख मजा तकरार का।
मीत बनते हैं सदा दौलत लुटा के देख ले,
जब मुसीबत आ पड़ी देखा तमाशा यार का।
पास जब तक जर रहा तो पूत भी अपनें बनें,
घोर बीमारी लगी मुख फिर गया परिवार का।
रो रहे हैं आज मेरी मौत पर हैरान हूॅं,
कल तलक था जो रहा मैं मांगता हक प्यार का।
साथ मिल-जुल के रहे भाई सभी इक जान थे,
शादियां जब हो गई लगता पता व्यवहार का।
पैर धरती पर कभी जिन के पड़े हैं कब कहाॅं,
चुभ गया ही जानता क्या दर्द होता खार का।
रोज करते वायदे है मुकरना आसान है,
हाल उस का पूछ दम भर रहा इकरार का।
प्यार होता है सदा यह दो दिलों के मेल का,
मोल बिकती गर मुहब्बत रुख़ करें बाजार का।
राम भज ले नाम जप ले हो रही अब सांझ है,
है यहां ‘शिव’ मौज मेला ज़िंदगी दिन चार का।
— शिव सन्याल