कहाँ है मेरी मिट्टी
मिट्टी की सोंधी खुशबू
पहली फुहार के बाद
सीमेंट-गारे में कहाँ?
शीत की अलसायी धूप
गिलास में गरम चाय की मिठास
पाँच सितारा होटल में कहाँ?
ठेले पर लिए बर्फीले पहाड़
रंग-बिरंगे गोले का स्वाद
सहज उपलब्ध आइसक्रीम में कहाँ?
त्यौहारों पर कपड़े खरीदना
दर्जी का सिलना और पहन ख़ुश होना
अनलाइन बेमौसमी त्यौहारों में कहाँ?
आते-जाते बैलगाड़ी के पीछे
बस्ते लटका, मस्ती में चलना
फर्राटेदार कार की सवारी में कहाँ?
मेहंदी के पत्तों को पीस
सावन में हाथों को रंगना
वह लाली, केमिकल कोनों में कहाँ?
सखियों, दादी, अम्मा, भाभी संग
चुहलबाजियाँ, मान-मनौव्वल
फेसबुकिया मित्रों में कहाँ?
मिट्टी छूटी, छूटा खुशियों का त्यौहार
अब तो हँसी का मुखौटा पहने
हँस रहा सारा संसार।
— डाॅ. अनीता पंडा ‘अन्वी’