कविता

मीठी मौत

मौत की अहमियत वक़्त में ही

समझ आता है,

हर प्यारा अहसास

ठोकर खा कर सब कुछ समझाता है,

कभी कभी मौत की मिठास

कीमती मिठाई से भी मीठा हो सकता है,

रिश्तों की कदर समय पर खो सकता है,

बदहवास आदमी के मन का भरोसा नहीं,

किसी के जहनी हालात को कोई सोचा नहीं,

जिसके दिमाग की तारें

दस परेशानियों से त्रस्त हो,

आर्थिक परिस्थितियों से ग्रस्त हो,

उसे जीवन लुभाता नहीं है,

मौत के आलिंगन का लोभ जाता नहीं है,

बड़े के आगे कोई और बड़ा आ जाये,

सामने वाले को वो तुच्छ जता जाये,

उस समय की पीड़ा नाकाबिले बर्दाश्त होता है,

रक्त का एक एक कतरा तकलीफ देता है,

सोचा जाना चाहिए कि

जिम्मेदार कब समझेगा घर का कर्तव्य,

एक जवाबदेही है यह कार्य

नहीं है इसमें कोई रहस्य,

वक्त किसी भी अहमक को

खुलकर समझा देता है,

मीठी मौत याने जड़ का सूखन

सबको कर्तव्यबोध सीखा देता है।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554