लघुकथा – दिशा अवरोध [दुनियावाले]
“मीत बेटा, आज मुझे बुखार है, सरदार जी के काम करने नहीं जा सकता। बेटा वो मजदूरी काट लेगा, तुम पशुओं को चारा ड़ाल खेत में पानी बगैरा दे आना।”
मीत, “पिता जी मेरे परसों से पेपर शुरू हैं, मुझे अब मुझे पढ़ने दो बाद में जितना मर्जी काम करवा लेना।”
पिता के आगे मीत की नहीं चली। पढाई छोड़ मालिक के काम करने चला गया। अगले दिन सुबह पिता बोले, “रात कुछ अधिक ही पी ली, अब उठा नहीं जा रहा। मीत तुम सरदार के खेतों में काम कर आओ और पैसे माँग लाना।”
जब मीत खेत में काम कर रहा था तो स्कूल में छुट्टी के समय मीत को अध्यापक ने देख डाटा, “मीत, तुम यहाँ काम कर रहे हो, स्कूल क्यों नहीं आते, पढाई में इतने होशियार हो फिर भी पूरा ध्यान क्यों नहीं देते। तेरे पिता को तो पीने से फुरसत नहीं, क्या तुम भी वैसा ही जीवन जीना चाहते हो।”
सरदार पास आते मुस्कराकर बोला, ये छोटे लोग इसी काम के लिये तो बने हैं मास्टर जी! क्यों गलत राह दिखाते हो।”
मीत ने घर जा सारी बात पिता को बताई। मीत का पिता बोला, “हम गरीबों को पढ़ने का कोई हक नहीं। काम तो लोगों का ही करना है, कौन सा नौकरी मिल जानी है।”
मीत, “पिता जी मुझे ये काम नहीं करना, मुझे खुद पर विशवास है। वो दिन-रात पिता के साथ काम भी करवाता और पढाई भी करता रहा।
जब उसकी पुलिस में भरती हो गई तो पिता को खेत में जा मीत बोला, “पिता जी, लो मिठाई खाओ। मेरी पुलिस में भरती हो गयी है। अब चलो खेत में काम करने की कोई जरूरत नहीं है।”
तुम दिशा अवरोध ले शराब की एक बोतल के लिये अमीरों के पास काम के लिये नहीं जाओगे। तुम अब मेरी तनखाह को संभालोगे।”
मीत, “दुनियादारी का तंज पिलाओ और नीचा दिखाओ समझ पिता के चरणों में बैठ गया।”
— रेखा मोहन