कविता

अपने आप में …

देखता हूँ…अपने आप में ..
मेरे अंतरंग में
भेद – अभेद
मंगलकारी चेतना
क्रांति का सौध
शांति की सुषमा
हर दिन नयी ऊर्जा लेकर
चलता हूँ मैं
इस दुनिया में

अज्ञान मेरे चारों ओर
एक विकार है
प्रवेश द्वार बंद है
मेरे अंदर उसका
आग हूँ, ज्वाला पुँज हूँ मैं
चलता है कैसे मेरे साथ
साथी बनकर यह अंधकार?

साहस है अपने आपको खोज़ना
और आविष्कार करना
मोह – बंधनों को पारकर
सरल नहीं है संसार को समझना
मनुष्य की रचना है
वर्ण – वर्ग, जाति – धर्म,
भेदों की ये काँटें
शांति नहीं देगी इस जग को
समता – ममता – बंधुता – भाईचारा ही
मूल सूत्र है मत भूलना ।

— पी. रवींद्रनाथ

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।