अपने आप में …
देखता हूँ…अपने आप में ..
मेरे अंतरंग में
भेद – अभेद
मंगलकारी चेतना
क्रांति का सौध
शांति की सुषमा
हर दिन नयी ऊर्जा लेकर
चलता हूँ मैं
इस दुनिया में
अज्ञान मेरे चारों ओर
एक विकार है
प्रवेश द्वार बंद है
मेरे अंदर उसका
आग हूँ, ज्वाला पुँज हूँ मैं
चलता है कैसे मेरे साथ
साथी बनकर यह अंधकार?
साहस है अपने आपको खोज़ना
और आविष्कार करना
मोह – बंधनों को पारकर
सरल नहीं है संसार को समझना
मनुष्य की रचना है
वर्ण – वर्ग, जाति – धर्म,
भेदों की ये काँटें
शांति नहीं देगी इस जग को
समता – ममता – बंधुता – भाईचारा ही
मूल सूत्र है मत भूलना ।
— पी. रवींद्रनाथ