क्या हैं नार्सिसिस्ट पर्सनैलिटी डिसऑर्डर (NPD)
‘नार्सिसिस्ट’ मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जिसे नार्सिसिस्ट पर्सनैलिटी डिसऑर्डर कहते हैं। संक्षेप में इसे NPD एवं हिंदी में इसे “आत्मकामी व्यक्तित्व विकार” कहते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति में अत्यधिक आत्म-प्रेम, स्व-महत्वाकांक्षा, और दूसरों की भावनाओं के प्रति उदासीनता होती है। इस डिसऑर्डर के चलते व्यक्ति में सहानुभूति की कमी, संवेदनशीलता और सामाजिक संबंधों में कठिनाई देखी जा सकती है। इस प्रकार के डिसऑर्डर और विकार में आत्म-प्रेम सबसे घातक हैं और वर्तमान समय में यह विकार लगभग सभी वर्गों के लोगों में चाहे वो बच्चें हो, युवा हो, वृद्ध हो, महिला हो या पुरुष हो, सभी के जीवन में सूक्ष्म रूप एवं स्थूल रूप से यह प्रभाव डाल रहा हैं । उससे भी बड़ी समस्या यह हैं की लोगों को इसके विषय में ज्ञान भी नही हो पा रहा है की वें एक खतरनाक विकार का शिकार हो रहे हैं।
फैशन-परस्ती के इस दुनिया में लोगों का आत्ममुग्धता की छाया एवं आत्म-प्रेम और खुद की तस्वीर देखने का जूनून इस कदर होता हैं की कई बार वें यह भूल जाते हैं कि वें कहाँ और किस स्थिति में हैं। सड़क पर चलते समय सड़क के किनारे खड़े हुए मोटरसाईकल के साइड मिरर में या फिर कार के शीशे में ही खुद का तस्वीर देखने पर उतारू हो जाते हैं, मोबाइल फ़ोन अपने जेब से निकालते ही सबसे पहले टच स्क्रीन में या फिर कैमरा खोलकर बार – बार अपनी तस्वीर देखना, अपने बालों पर बार-बार हाथ फेरना और इसके साथ- साथ अलग–अलग तरीके से फेसियल एक्सप्रेशन बनाकर देखना कि हम कैसे दिख रहे हैं आदि कई सारी क्रियाएं, जो देखने और करने में चीजें छोटी और सामान्य सी लगती हैं, पर यहीं से हमारे पर्सनैलिटी का डिसऑर्डर यानी व्यक्तित्व में विकार की शुरुआत होती है। हम समझ नहीं पाते हैं एवं ये हमारी जीवनचर्या में सम्मिलित हो जाते हैं और अंतत: हम “नार्सिसिस्ट पर्सनैलिटी डिसऑर्डर” के शिकार होने लगते हैं। धीरे-धीरे जब यह अपने क्लाइमेक्स पर पहुँचता है और जब हम इसके पूर्णतः शिकार होते हैं। तब हम ऐसी-ऐसी क्रियाएँ करने के आदी हो जाते हैं और फलस्वरूप हम बार–बार हँसी और मज़ाक के पात्र बनते हैं।
इस विकार के कई कारण हो सकते है, पर इनमें जो प्रमुख कारण अपने आप को हर किसी से समझदार, जानकार एवं ज्ञानवान दिखाना होता है। विषय चाहे कोई भी हो वे लोग इस कदर अपने विचार रखने पर उतारू हो जाते हैं जैसे कि उन्हें इस क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त हो। उनकी बातें तार्किक हों या अतार्किक हों उन्हें अपनी बातें सिद्ध करने की जिद लगी रहती है। इसमें लोगों को खुद के विषय में कई सारी गलत मान्यता होती है, उन्हें लगता हैं कि वो जो कर रहे हैं, जो कुछ बोल रहे हैं वह सही है या वो बहुत अच्छे दिखते हैं।
इन सबके पीछे जो सबसे बड़ा एक कारण हैं उनमें से एक विभिन्न प्रकार का सोशल मीडिया हैं। चाहे वो इंस्टाग्राम हो या फेसबुक हो या कोई दूसरा सोशल मीडिया हो, इन सब पर आ रहे कंटेंट या सामग्री जो हमारे मन–मस्तिष्क को इस प्रकार कुंठित कर रही हैं जिससे लोगों के अन्दर उसी रास्ते पर चलने की होड लगी हैं। हम रियल लाइफ छोड़कर रील लाइफ जीने की कोशिश कर रहे हैं। सेल्फ की बिना परवाह किये बिना सेल्फी की दुनिया में व्यस्त हैं।
वर्तमान समय में स्थिति यह हैं कि अगर हम इससे खुद को और आने वाली पीढ़ी को नही बचा पाए़ तो भविष्य में स्थिति बिल्कुल पागलपन वाली हो जाएगी । इससे बचने के अनेक उपायों में से एक उपाय यह है कि हम रियल लाइफ को जीने का प्रयास करें बजाय रील लाइफ के।
अपने मन में आने वाले विचारों के प्रति सजग रहें, हर क्षण, प्रतिपल हम इस बात पर ध्यान दें कि कहीं हम ज्यादा दिखाने का प्रयास तो नहीं कर रहे हैं, हम सामने वाले को नीचा दिखाने का प्रयास तो नही कर रहे हैं और अगर हमें ऐसा लगता है, तो हमें अपने ऊपर सुधार करने की आवश्यकता है। इसके लिए अलग–अलग प्रकार के तकनीक जैसे योग–प्राणायाम, ध्यान-साधना एवं स्वाध्याय का सहारा लेना चाहिए। इससे हमारे मन–मस्तिष्क में सकारात्मक विचारों का संचार होता हैं और अगर हमारे मन–मस्तिष्क में आने वाले विचार सकारात्मक होंगे तो “नार्सिसिस्ट पर्सनैलिटी डिसऑर्डर” जैसे विकार से हम कोसों दूर रहेंगे ।
— विशाल सोनी