कविता – रक्षति रक्षिता
यह सन्देश है,
उच्चस्तरीय व्यवहार है।
कल्पना है यहां असीम,
सब मानते हैं,
यही सबसे बड़ा उपहार है।
ईश्वरीय आहार है,
प्रकृति का आभार है।
हमें आह्लादित कर,
खुशियां देती अपार है।
प्रकृति ने हमें आसमां दी है,
खुशियां और सुकून,
इसमें समाहित है।
ज़िन्दगी इस इश्क में पड़कर,
खुद ही आह्लादित है।
अनंतकाल से आ रही,
यह एक सुखद अहसास है।
मतलबी दुनिया में,
गोते लगाने में,
प्रकृति से मिलती है हमें,
जज्बा और जुनून में,
सब करते प्रयास हैं।
यही हमें ज़िन्दगी देती है,
सुखद अहसास दिलाने में,
हमेशा मददगार बनकर,
तकलीफें सह लेती है।
इसके कांट-छांट से रहें हम दूर-दूर,
नहीं तो अकेले कोने में,
रहने के लिए हम-सब,
हों जाएंगे खुद मजबूर।
हमें आशियाना देती है,
खुशियां ढूंढने में हमेशा,
भरपूर ताकत देते हुए,
तकलीफें झेलने में,
बड़ी मजबूत पतवार से,
आगे बढ़ने में,
इन्सानियत की हवा से,
उड़ाती फिरतीं है।
रक्षति रक्षिता एक सिराहना है,
तकलीफें झेलने में,
देती खुशियां भरपूर,
यही कारण है कि,
यह कहलाता मधुर तराना है।
— डॉ. अशोक शर्मा