ग़ज़ल
कर इबादत फ़क़त इक ख़ुदा के लिए।
हाथ अपने उठा फिर दुआ के लिए।
अपने रब की सदा ही रज़ा के लिए।
काम करना हमेशा बका के लिए।
घर की पूँजी सभी खा गये हैं वकील,
चार पैसे नहीं हैं दवा के लिए।
दीन दुनिया में जिन से नहीं फायदा,
छोड़ दो काम ऐसे सदा के लिए।
और कोई भी मक़सद नहीं था हमीद,
लोग लड़ते रहे हैं अना के लिए।
— हमीद कानपुरी